प्रेम


एक बार एक गुर्जरी दूध बेच रही थी और सबको दूध नाप नाप कर दे रही थी । उसी समय एक नौजवान दूध लेने आया तो गुजरी ने बिना नापे ही उस नौजवान का बर्तन दूध से भर दिया ।
-वही थोड़ी दूर पर एक साधु हाथ में माला लेकर मनको को गिन गिन कर माल फेर था । तभी उसकी नजर गुजरी पर पड़ी और उसने ये सब देखा और पास ही बैठे व्यक्ति से सारी बात बताकर इसका कारण पूछा ।
-उस व्यक्ति ने बताया कि जिस नौजवान को उस गुर्जरी ने बिना नाप के दूध दिया है वह उस नौजवान से प्रेम करती है इसलिए उसने उसे बिना नाप के दूध दे दिया ।
-यह बात साधु के दिल को छू गयी और उसने सोचा कि एक दूध बेचने वाली गुर्जरी जिससे प्रेम करती है तो उसका हिसाब नही रखती और मैं अपने जिस ईश्वर से प्रेम करता हुँ, उसके लिए सुबह से शाम तक मनके गिनगिन कर माला फेरता हुँ। मुझसे तो अच्छी यह गुजरी ही है और उसने माला तोड़कर फेंक दी ।

-जीवन भी ऐसा ही है । जहाँ प्रेम होता है वहाँ हिसाब किताब नही होता है, और जहाँ हिसाब किताब होता है वहाँ प्रेम नही होता है , सिर्फ व्यापार होता है।..

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