आलम-ए-बेबसी

 क्या बताएं ग़ालिब अपनी नौकरी ज़िन्दगी का आलम-ए-बेबसी 
कि  अब तो दिवाली भी रूठ कर संडे को जा पहुंची। 

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सरकारी सेवक। 
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